दामिनी
को श्रद्धांजलि
मै हर एक दिल में छाला देखता हूँ ,
किसने कैसे सम्हाला देखता हूँ |
कई राणा, कई हैं लक्ष्मी
बाई ,
सभी हाथों में भiला देखता हूँ I
जगह वो , तू जहाँ पाई गई थी,
वहां मैं इक शिवाला देखता हूँ I
दमक से दामिनी की कल बुनोगे,
बहुत मजबूत जाला देखता
हूँ I
समय है
,जाग जाओ पहरे दारों,
तुम्हारा
मुह मै काला देखता हूँ I
सियासत भूल के कुछ कर भी गुज़रो,
बना सबको
निवाला देखता हूँ I
अँधेरा हाँ बहुत गहरा था लेकिन ,
क्षितिज
पर मै उजाला देखता हूँ I
No comments:
Post a Comment