ज़िन्दगी में कुछ तो कमी बनी रहे ,
ता कि रिश्तों की गरमी, बनी रहे ।
मेरी इस क़दर पूछ-परख होती रही,
ये ख़ुदा,सूरत अभी,मातमी बनी रहे।
बहुत उद्दंड हैं वो बाज नहीं आने के,
आखें लाल हों, भौवें तनी, बनी रहे।
लोग आयेंगे, रहेंगे, चले जायेंगे,
बस ये आसमाँ और ज़मी बनी रहे।
गिरिराज भंडारी
ता कि रिश्तों की गरमी, बनी रहे ।
मेरी इस क़दर पूछ-परख होती रही,
ये ख़ुदा,सूरत अभी,मातमी बनी रहे।
बहुत उद्दंड हैं वो बाज नहीं आने के,
आखें लाल हों, भौवें तनी, बनी रहे।
लोग आयेंगे, रहेंगे, चले जायेंगे,
बस ये आसमाँ और ज़मी बनी रहे।
गिरिराज भंडारी
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