Friday, 4 January 2013

असला मौन कोने में पड़ा है

  असला मौन कोने में पड़ा है


 वज़न कंधों में सबके आ पड़ा है ,
 कितना बेरहम ,कितना बड़ा है ।
कोई भूखा है ठंडी में अकड़ते,
संसद में अभी ताला पड़ा है ।
सियासी रोटियां सिकने लगी है ,
तवा भी गर्म और काफ़ी बड़ा है।
सशंकित हूँ मै, कुछ उत्तर नहीं है ,
विचारों का अभी अंतर अड़ा  है ।
कहीं पे गिर न जाए सच हमारा,
वो जिसपे बैठा है, उल्टा घड़ा है ।
वो खा पाएंगे,इसमें शक मुझे है,
ये सच तो स्वाद में कड़वा बड़ा है।  
जिसपे था यकीं ये कारगर है ,
वो असला मौन कोने में पड़ा है।
                गिरिराज भंडारी
                1A /सड़क 35 /सेक्टर 4
                भिलाई ,जिला -दुर्ग (छ.ग.)                       

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