हर दिन नया घुमाव है
प्राप्त स्वाद खो चुके ,अप्राप्त से खिंचाव है ,
अपनों से बेरुखी यहाँ ,गैरों का रख रखाव है ।
भूलना चाहूं भी तो ,हर घाव है हरा अभी ,
टीसता है हर घड़ी ,बाक़ी अभी रिसाव है ।
उथलों में कब रुक है वो, बह के दूर जा चुका,
गहरी ज़मी मिली जहाँ उस जगह जमाव है ।
भाषा बड़ी तटस्थ थी, हाव भाव संतुलित ,
आंखे बयान कर गयी,किस तरफ़ झुकाव है ।
चंचल बड़ी है ज़िंदगी,तय यहाँ कुछ भी नहीं,
हर दिन है नए रास्ते,हर क्षण नया घुमाव है ।
गिरिराज भंडारी
1A /सड़क 35 /सेक्टर 4
भिलाई ,जिला -दुर्ग (छ.ग.)
प्राप्त स्वाद खो चुके ,अप्राप्त से खिंचाव है ,
अपनों से बेरुखी यहाँ ,गैरों का रख रखाव है ।
भूलना चाहूं भी तो ,हर घाव है हरा अभी ,
टीसता है हर घड़ी ,बाक़ी अभी रिसाव है ।
उथलों में कब रुक है वो, बह के दूर जा चुका,
गहरी ज़मी मिली जहाँ उस जगह जमाव है ।
भाषा बड़ी तटस्थ थी, हाव भाव संतुलित ,
आंखे बयान कर गयी,किस तरफ़ झुकाव है ।
चंचल बड़ी है ज़िंदगी,तय यहाँ कुछ भी नहीं,
हर दिन है नए रास्ते,हर क्षण नया घुमाव है ।
गिरिराज भंडारी
1A /सड़क 35 /सेक्टर 4
भिलाई ,जिला -दुर्ग (छ.ग.)
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