कौन कैसा क्यूँ है ये किसको पता है
व्यक्तिगत सत्यों की सबको बाध्यता है,
व्यक्तिगत सत्यों की सबको बाध्यता है,
कौन कैसा क्यूँ है ये किसको पता है।
दानवों सा इस जगह जो दिख रहा है,
क्या पता किस के लिए वो देवता है।
वो लंग सा जो भंग पैरों पर खड़ा है ,
गर सहारा हो तो वो भी दौड़ता है।
अटल पर्वत सा, नहीं है कोई आदम,
वक़्त आने पर स्वयं को मोड़ता है।
प्रतिक्रिया जो कर सके न , मानते हैं,
जैसा किया वैसा यहीं पर भोगता है।
एक ग़लती की थी उसने ज़िन्दगी में,
आज तक वो ज़िन्दगी को खीजता है।
उसकी खामोशी के कुछ तो मायने हैं,
जो अपनी तन्हाई से घंटों बोलता है।
गिरिराग भंडारी
आज तक वो ज़िन्दगी को खीजता है।
उसकी खामोशी के कुछ तो मायने हैं,
जो अपनी तन्हाई से घंटों बोलता है।
गिरिराग भंडारी
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