Saturday 27 July 2013

पर निजाम गूंगा और बहरा है

पर निजाम गूंगा और बहरा है
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जख़्म लगा जो बहुत गहरा है
पर निजाम गूंगा और बहरा है
और मरहम न लगा दे कोई
सोचिये, इस बात पे भी पहरा है
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              गिरिराज भंडारी

किसी के दर्द को सीने से लगा कर देखें




किसी के दर्द को सीने से लगा कर देखें
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किसी की चश्मे नम को पास से ज़रा देखें
किसी के दर्द को सीने से लगा कर देखें
कही पे मौत है , मातम है , दुख के आंसू है
सियासी रोटियां लाशों पे रख के ना सेकें
                  गिरिराज भंडारी
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क्या ये सच नही ?



क्या ये सच नही ?
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सब्ज़ी काटती मेरी पत्नी,
और , खालीपन मे ध्यान से देखता मैं
देखता हूँ ,
एक एक भिंडी को प्यार से धोते पोछते हुये
फिर एक एक करके छोटे छोटे तुकड़ों मे काटते हुये
फिर अचानक
एक भिंडी के ऊपरी हिस्से मे छेद दिख गया शायद
मेरी पत्त्नी को
मैने सोचा एक भिंडी खराब हो गई
लेकिन , नही
मेरी होशियार पत्नी ने
ऊपर से थोड़ा काटा
कटे हुये हिस्से को फेंक दिया
फिर ध्यान से बची भिंडी को देखा
शायद कुछ और हिस्सा खराब था
उसने थोड़ा और काटा और फेंक दिया 
फिर  तसल्ली की ,
बाक़ी भिंडी ठीक है कि नही ,
तसल्ली होने पर
काट के , सब्ज़ी बनाने के लिये रखी भिंडी मे मिला दिया !
मै मन ही मन बोला ,
वाह क्या बात है !!
पच्चीस पैसे की भिंडी को भी हम
कितने खयाल से ,ध्यान से सुधारते हैं  ,
प्यार के काटते है
जितना हिस्सा सड़ा है , उतना ही काट के अलग करते है ,
बाक़ी अच्छे हिस्से को स्वीकार कर लेते हैं ,
क़ाबिले तारीफ है !
लेकिन ,
अफसोस !! 
इंसानो के लिये कठोर हो जाते हैं
एक ग़लती दिखी नही
कि ,उसके पूरे व्यक्तित्व को काट के फेंक देते हैं
क्या  पच्चीस पैसे की भिंडी से भी कमतर हो गया है आदमी ?
                गिरिराज भंडारी

अभी तो प्रवक्ता ही बोले हैं



अभी तो प्रवक्ता ही बोले हैं
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प्रकृति तो खामोश है , चुप है ,
अभी भी,
ये उसका बोलना नही है
धोखे मे ना रहें !
चुप चाप देख रही है
सहन कर रही है
ज्यादतियाँ
अपने ऊपर होते  हुये !
ये जो कुछ भी हुआ
गुस्सा नहीं है , प्रकृति का
इशारा है महज ,
वो भी ,
प्रक़ृति के प्रवक्ताओं का !
नदी, पहाड़ , झील, झरने
जंगल, धुन्ध , आन्धी , तूफान
सागर , ज्वालामुखी
और ना जाने , कौन कौन प्रवक्ता है !
ये तो बस इशारा है ,
सावधान होने का !
प्रक़ृति के प्रवक्ताओं का,
अभी तो प्रकृति , खामोश है , शांत है
अभी पकृति का बोलना बाक़ी है
अब भी मजबूर किये तो
एक दिन , बोलेगी, प्रकृति भी !!
” प्रकृति की गोद में खेलें, गोद से ना खेलें ”
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                         गिरिराज भंडारी

अब तो समझो



अब तो समझो
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प्रक़ृति में,
सब जानते है
सब मानते है
ध्वनि की प्रतिध्वनि
वैसे ही होती है !
जैसे ध्वनि की गई थी 
गालियों के बदले , गालियां
मंत्रों के बदले मंत्रोच्चार
और तालियों के बदले , तालियां!!
लेकिन, सब ये नही जानते
या , स्वार्थवश मानना नही चाहते
कि सारा ब्रम्हांड
कर्मोंके लिये भी प्रतिध्वनि केन्द्र है
ठीक वैसी ही घटनायें प्रकृति लौटायेगी
जैसा हमने किया !!
फिर चाहे हमने प्रकृति के खिलाफ किया हो
या , किसी भी इंसान के खिलाफ !!!
कब होगा, कैसे होगा , कहां होगा
कितना होगा
सब प्रकृति तय करेगी !!!!
हम या तुम नही
गिरिफ्तारी नही ,अदालत नही,कोई सुनवाई नही ,
प्रकृति स्वयं अदालत है , जज है ,
सीधे सजा की शुरुआत ,
भुगतना सबकी मजबूरी है
निर्माण के बदले निर्माण , विनाश के बदले विनाश !!!!!
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गिरिराज भंडारी