Thursday, 3 January 2013

ग़ैरों को समझाता नहीं

   ग़ैरों को समझाता  नहीं 
मुस्कुराना बेवज़ह मुझको अभी  आता नहीं ,
अपनी तक़लीफों का विज्ञापन मुझे भाता नहीं।

आप खाएं या न खाएं ये है मर्ज़ी आप की ,
बेदिली से कुछ मिले तो मै कभी खता नहीं ।

रोक लेता है मुझे जागा  हुआ मेरा जमीर ,
इसलिए मैं आपके रस्तों  में चल पता नहीं ।

आप का सच आपको किस ठौर में पहुंचा गया ,
अच्छा-बुरा,अपना-पराया,कुछ समझ आता नहीं ।

मेरी उम्मीदों ने भी, है कुछ सबक़ मुझको दिया
सच में जो होता है वो,सच में नज़र आता नहीं ।

जो है यकीं तो वाह वा, है  बेयक़ीनी  वाह  वा ,
अपनों को ज़रूरी नहीं,ग़ैरों को समझाता नहीं ।

मौन में न जाने कितने गीत उभरे,छिप गए,
अप्रासंगिक प्रणय गीतों को कभी गाता  नहीं ।
 
                        गिरिराज भंडारी
                        1A /सड़क 35 /सेक्टर 4
                        भिलाई ,जिला -दुर्ग (छ.ग.)                       



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