Wednesday, 23 January 2013

कोई  सागर  बसा   है,  नदी  की  आँखों  में,
ये   नदी   यूँ    ही   तो  बही    नहीं   जाती।
ख़ामोश है,  कुछ   कहती  नहीं  ज़माने  से,
ये  बातें ,  महफ़िल  में   कही  नही   जाती।
उमंगें हैं तरंगें  हैं , ख़्वाहिशे  जानिसारी  है,       ख़्वाहिशे  जानिसारी =जान देने की इच्छा
और   बेक़रारी  यूँ  कि,  सही   नहीं  जाती।
वो इनकार मुझपे हादसा से कम तो  न था,
फूटे बम तो ,कानों से सनसनी नहीं जाती।
बाद ए फ़ना की मुलाक़ातें भी मुमकिन हैं,
अनासिर बिखरते  हैं,रूहें  कहीं नहीं जाती।          अनासिर=पंच तत्व
बरसों से सर झुकाए,ख़ामोश सहे जाते हो,
क्या भीतर की कभी बुज़दिली नही जाती?
चाँद छिपता है बादलों में, कभी दिखता है,
मेरी छत से,पर ये चांदनी कहीं नहीं जाती।




  




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