Wednesday, 30 January 2013

छोड़ दे बाँह मेरी , ख़ुद मुझे सम्हलने दे

छोड़ दे बाँह मेरी , ख़ुद  मुझे  सम्हलने दे
*****************************
इलाज-ओ -मुदावा  अभी  से ,  रहने   दे ,   मुदावा=उपचार 
ज़रा सा दर्द तो बढने  दे ,अभी  सहने  दे।

जो  मंज़ूर  है, बुलंद  सर  का  झुक जाना,
तो अंजुमन में मुझे , मेरी  बात  कहने दे।

तय है, कभी सड़ जाएयेगा  ठहरा   पानी,
किसी बहाने से, कभी तो  इसे  बहने  दे। 

तेरे मैख़ाने की  लग्ज़िश नहीं है ,ऐ साक़ी,  लग्ज़िश=लड़खड़ाना 
छोड़ दे बाँह मेरी , ख़ुद  मुझे  सम्हलने दे।

साथ चलते हुए , रस्ते बदल  भी  जाते हैं,
जब  तक  जो चले   साथ , उसे चलने दे।

ये  दिल प्यार समझने के कहाँ क़ाबिल है,
ग़मों  की गोद में कुछ और अभी पलने दे।  
   
खिज़ां की  क़ैद से मैं, बहार छीन लाया  हूँ,
अब बड़े शौक़ से,फ़ूलों को अभी खिलने  दे।
                                   गिरिराज भंडारी 


 

No comments:

Post a Comment