अंदर तक की ये जलन,कुछ और है,
दिल को लगी ये चुभन,कुछ और है।
कल कही थी बात, वो कुछ और थी,
कांटी छांटी ये कथन, कुछ और है।
कुछ भला परिणाम आएगा ज़रुर,
हर तरफ़ लगी लगन, कुछ और है।
प्रकृति का हर दृश्य कुछ सिखा रहा,
नागों भरा, संदली वन, कुछ और है।
नगर- नगर, हर डगर, देखा असर,
अब के जो लगी अगन,कुछ और है।
गर्त में जाती दिखी है सभ्यता,
अब हवाओं में चलन कुछ और है।
ख़ुद के अन्दर भस्म कर कुरीतियाँ,
कर के देखो ये हवन कुछ, और है।
हर नदी,तालाब,सागर,जल ही जल,
इस देश में गंगो-जमन कुछ और है।
पर देश के नक़्क़ाल, वहाँ पर सुनो,
आबो-हवा,रहन-सहन कुछ और है।
गिरिराज भंडारी
दिल को लगी ये चुभन,कुछ और है।
कल कही थी बात, वो कुछ और थी,
कांटी छांटी ये कथन, कुछ और है।
कुछ भला परिणाम आएगा ज़रुर,
हर तरफ़ लगी लगन, कुछ और है।
प्रकृति का हर दृश्य कुछ सिखा रहा,
नागों भरा, संदली वन, कुछ और है।
नगर- नगर, हर डगर, देखा असर,
अब के जो लगी अगन,कुछ और है।
गर्त में जाती दिखी है सभ्यता,
अब हवाओं में चलन कुछ और है।
ख़ुद के अन्दर भस्म कर कुरीतियाँ,
कर के देखो ये हवन कुछ, और है।
हर नदी,तालाब,सागर,जल ही जल,
इस देश में गंगो-जमन कुछ और है।
पर देश के नक़्क़ाल, वहाँ पर सुनो,
आबो-हवा,रहन-सहन कुछ और है।
गिरिराज भंडारी
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