है तवील यादों का अलग मज़ा
है जो रू ब रू तो अलग नशा
मिलूँ तुमसे,कि तुम्हें याद करूं ?
ग़मे हस्ती है, ग़में जाना भी
राहे पुर ख़तर है , जमाना भी
मैं किसके लिये फ़रियाद करूं ?
कभी नाराज हैं , मुस्कुराना भी
है कभी यकीं, आजमाना भी
क्या खुद पे ही मैं बेदाद करूं ?
कभी पेशो पस में घिरा है तू
कभी रिवायतों से डरा है तू
तू कहाँ बंधी ?जो आजाद करूं ?
गिरिराज भंडारी
है जो रू ब रू तो अलग नशा
मिलूँ तुमसे,कि तुम्हें याद करूं ?
ग़मे हस्ती है, ग़में जाना भी
राहे पुर ख़तर है , जमाना भी
मैं किसके लिये फ़रियाद करूं ?
कभी नाराज हैं , मुस्कुराना भी
है कभी यकीं, आजमाना भी
क्या खुद पे ही मैं बेदाद करूं ?
कभी पेशो पस में घिरा है तू
कभी रिवायतों से डरा है तू
तू कहाँ बंधी ?जो आजाद करूं ?
गिरिराज भंडारी
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