Saturday, 2 February 2013

जब भी मिलती  है वो, नाम  क्यों  सुझाती है?
क्या कीजिए उन्हें, कि हया भी नहीं  आती है?
राह  भटकों  में  मेंरा  नाम ना जोडें , कि मुझे,
तारीक़ियाँ ख़ुद जल के,सही रास्ता दिखाती हैं।
जादू बाक़ी है कुछ, अभी भी  इन फ़िजाओं में,
ये  सरसराती  हवाएं भी  गीत  वही  गाती  है।
तमन्ना  है  दिल  में , देखूँ  तो कैसे लगती है,
किसी की ज़िन्दगी जब खुल के मुस्कुराती है।
फ़िर उसी उम्मीद के  ज़ेरे असर है  दिल मेरा ,
फ़िर सबा  उनका ही,   सलाम लिए आती है।




 

    
 

No comments:

Post a Comment