दरारें, घर न लील जाये कहीं,
बुनियादें फिर से हिल न जाये कहीं।
आग, पानी से मिल न जाये कहीं
कोई सूरत निकल न जाये कहीं।
फ़िर वही शोर, वही साजिश है,
लोग फ़िर से बहल न जाये कहीं।
अब न लक्ष्मण, न उसकी रेखा है,
हदें, हया से, पिघल न जाये कहीं।
झूठ ने मुँह बहुत बड़ा खोला,
वो सारा सच निगल न जाये कहीं।
सियासी रास्तों में फिसलन है,
पाँव, देखो फिसल न जाये कहीं ।
दबा रखें है ,पर अभी भुलाया नहीं,
मसला फिर से उछल न जाये कहीं।
माहौल बन रहा है, बदले कुछ,
माहौल खुद ही, बदल न जाये कहीं।
गिरिराज भंडारी,भिलाई,सेक्टर,4
बुनियादें फिर से हिल न जाये कहीं।
आग, पानी से मिल न जाये कहीं
कोई सूरत निकल न जाये कहीं।
फ़िर वही शोर, वही साजिश है,
लोग फ़िर से बहल न जाये कहीं।
अब न लक्ष्मण, न उसकी रेखा है,
हदें, हया से, पिघल न जाये कहीं।
झूठ ने मुँह बहुत बड़ा खोला,
वो सारा सच निगल न जाये कहीं।
सियासी रास्तों में फिसलन है,
पाँव, देखो फिसल न जाये कहीं ।
दबा रखें है ,पर अभी भुलाया नहीं,
मसला फिर से उछल न जाये कहीं।
माहौल बन रहा है, बदले कुछ,
माहौल खुद ही, बदल न जाये कहीं।
गिरिराज भंडारी,भिलाई,सेक्टर,4
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