Friday, 1 March 2013

कुछ आधुनिक दोहे

      
          कुछ आधुनिक दोहे
व्यापारी  जितना बडा उसको उतना  छूट
आंख मूंद के मिडिल को चाहे जितना लूट

चाहे जितना लूट, कि   भूखा -नंगा  करदे
बचे –खुचे तो  महंगाई  को आगे   कर  दे

ऐसे  लूट  मचाईये, भारी  हो   हर   सांस
टैक्स ऐसा लग रहा,जूं गले फंसी हो फांस

गले फंसी हो फांस,दाना  पानी को  तरसे
आन्दोलन कर मांगे,तो फिर  डंडा   बरसे

धरम जाति के नाम पे, सौ -सौ दंगा होय  
जनता बम से फट मरा, जूं ना  रेंगा कोय
खून लाल हर आदम के, सब्बौ नेता एक रंग 
छोड़े ये जनता किसको,अरु किसको राखे संग                      
 
 
 गिरिराज भंडारी

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