कुछ
आधुनिक दोहे
व्यापारी जितना बडा
उसको उतना छूट
आंख मूंद के मिडिल को चाहे जितना लूट
चाहे जितना लूट, कि
भूखा -नंगा करदे
बचे –खुचे तो
महंगाई को आगे कर दे
ऐसे लूट मचाईये, भारी
हो हर सांस
टैक्स ऐसा लग रहा,जूं गले फंसी हो फांस
गले फंसी हो फांस,दाना
पानी को तरसे
आन्दोलन कर मांगे,तो फिर
डंडा बरसे
धरम जाति के नाम पे, सौ -सौ दंगा होय
जनता बम से फट मरा, जूं ना
रेंगा कोय
खून लाल हर आदम के, सब्बौ नेता एक रंग
छोड़े ये जनता किसको,अरु किसको राखे संग
गिरिराज भंडारी
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