कहां की चीज़ थी,मैंने कहाँ रख दी?
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कुछ सोच कर मैंने भी हाँ रख दी,
कहां की चीज़ थी,मैंने कहाँ रख दी?
वो ले जाये, जिसमें भी हिम्मत है,
लो मैंने हर चीज़ दरमियाँ रख दी।
वो गूंगे हैं, बदले में चंद सिक्कों के,
मुंह बंद किये,गिरवी ज़ुबां रख दी।
मैं भी लाया था जवाब में कुछ,वो
तुहमतें, लानतें कहाँ कहाँ रख दी|
ता कि,वो काट दें मेरी दलीलों को,
उन्होंने सामने आहो फुगाँ रख दी।
कभी तो टूटे कहीं से चुप्पी, उसने ,
सामने मेरे,सारी कहानियाँ रख दी
गिरिराज भंडारी
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कुछ सोच कर मैंने भी हाँ रख दी,
कहां की चीज़ थी,मैंने कहाँ रख दी?
वो ले जाये, जिसमें भी हिम्मत है,
लो मैंने हर चीज़ दरमियाँ रख दी।
वो गूंगे हैं, बदले में चंद सिक्कों के,
मुंह बंद किये,गिरवी ज़ुबां रख दी।
मैं भी लाया था जवाब में कुछ,वो
तुहमतें, लानतें कहाँ कहाँ रख दी|
ता कि,वो काट दें मेरी दलीलों को,
उन्होंने सामने आहो फुगाँ रख दी।
कभी तो टूटे कहीं से चुप्पी, उसने ,
सामने मेरे,सारी कहानियाँ रख दी
गिरिराज भंडारी
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