उत्साह दिख रहा है,लगता वो
मौसमी है
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आसमां अलग है, और अलग जमीं है
मिलते नहीं हैं दोनों,ये आँख की कमी है
रात के
दामन में ज़ुर्म वही है, फ़िर
सुबह के माथे में फिर वैसी ही ग़मी है
जब से आरजू की आरजू है दिल में
तब से
तारी कोई जैसे बरहमी
है
बरहमी-खिन्नता,
जानने को है क्या हँसी
की सचाई में
झांकती आँखों में देखी अभी नमी है
आदर्श जो सजे हैं
आलमारियों में
झाड़ पोंछ कर ले, कुछ धूल
सी जमी है
परहेज़ आप इनसे करते हों न करते हों
जो आज चल रही हैं हवायें, पश्छिमी
है
थोड़ा सी और जान डालिए,अभी
तो
उत्साह दिख रहा है,लगता
वो मौसमी है
गिरिराज भंडारी
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