हर एक सम्त का हंगामा, मगर कहता है
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चलो मैं चुप हुआ , ज़माना अगर कहता है,
हर एक सम्त का हंगामा, मगर कहता है। सम्त-ओर
उनकी दरिंदगी , बेदिली के अफ़साने तो,
कट़ के गिरा हुआ हर एक सर कहता है।
कितना भटका हूँ, तड़पा हूँ, ये न पूछो मुझसे
सहरा-ओ-दश्त का हर एक शज़र कहता है शज़र -पेड़
सर पे साया मेरे,उन हांथों का कुछ ऐसे पड़ा
मेरा दुश्मन भी मुझे जाने जिगर कहता है।
ना प्यार,ना शिकवा , ना गुफ्तगू ना सुकूत , सुकूत-शांति
रहने वाला मगर उसी को ही घर कहत़ा है।
ह्क़्के गुफ्तार पे पहरे अगर लगे होंगे,
इधर जो कह न सका बात, उधर कहता है।
ख़ुदा बचाये मुझे ऐसे ग़मगुसारों से,
इब्तिदाई बात में जो अगर-मगर कहता है। इब्तिदाई---शुरुवाती
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ह्क़्के गुफ्तार--बोलने का अधिकार
ग़मगुसारों--दुःख में हाल पूछने वाले
गिरिराज भंडारी
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चलो मैं चुप हुआ , ज़माना अगर कहता है,
हर एक सम्त का हंगामा, मगर कहता है। सम्त-ओर
उनकी दरिंदगी , बेदिली के अफ़साने तो,
कट़ के गिरा हुआ हर एक सर कहता है।
कितना भटका हूँ, तड़पा हूँ, ये न पूछो मुझसे
सहरा-ओ-दश्त का हर एक शज़र कहता है शज़र -पेड़
सर पे साया मेरे,उन हांथों का कुछ ऐसे पड़ा
मेरा दुश्मन भी मुझे जाने जिगर कहता है।
ना प्यार,ना शिकवा , ना गुफ्तगू ना सुकूत , सुकूत-शांति
रहने वाला मगर उसी को ही घर कहत़ा है।
ह्क़्के गुफ्तार पे पहरे अगर लगे होंगे,
इधर जो कह न सका बात, उधर कहता है।
ख़ुदा बचाये मुझे ऐसे ग़मगुसारों से,
इब्तिदाई बात में जो अगर-मगर कहता है। इब्तिदाई---शुरुवाती
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ह्क़्के गुफ्तार--बोलने का अधिकार
ग़मगुसारों--दुःख में हाल पूछने वाले
गिरिराज भंडारी
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