Sunday, 14 April 2013

जागे हुए लगे सभी , यूँ कि शशर हुए

जागे  हुए लगे  सभी , यूँ  कि शशर  हुए
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उनकी आमद से ज्यूँ  ही हम बाख़बर हुए
अन्दर से भरभराये हम तितर बितर हुए 

मेरी फ़ितरत में मुझे , हरदम कमी दिखी
इक  बार जो  मेरे  हुए , वो  उम्र  भर  हुए

ये चाँद, ये  सूरज  ये, अन्धेरा, ये उजाला
कभी ये इधर हुए तो  कभी वो  उधर हुए

किसकी निगाह फ़िर गई ये तो पता नहीं
लेकिन  हमारे  शेरो  सुखन  बेअसर  हुए 

बस कुछ दीवारें तोड़ के आने  की बात थी,
खंडहर जहाँ  के सारे, अब हमारे घर हुए

लगता है परिंदों को,फिर अंदेशा हो गया  
तैयार  उड़ानों   के  लिए   बालोपर   हुए

दिल  का मेरे कोना कोई  सूना तो हुआ है
ऐसा  भी नहीं  है कि  यारों,  दरबदर हुए

करवट कोई जमाना, लेने  को  है शायद 
जागे  हुए लगे  सभी , यूँ  कि शशर  हुए

इमानो वफ़ा, रखें न रखें, उनका फैसला
हम  तो  भाई  कह  के यारों बेखबर हुए
                                 गिरिराग भंडारी







 




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