मैं वो लम्हे खुशी के फ़िर से खोज लाऊंगा।
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ग़मे जीस्त तू छिपा ले जहाँ भी ले जा कर, ( ग़मे जीस्त= सांसारिक दुःख )
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ग़मे जीस्त तू छिपा ले जहाँ भी ले जा कर, ( ग़मे जीस्त= सांसारिक दुःख )
मैं वो लम्हे खुशी के फ़िर से खोज लाऊंगा।
वो दबे पांव भी फ़िर आ न सकेगा तुम तक,
वो लबे बाम भी पहुंचा,तो मैं जग जाऊंगा।
फ़िर मुझे क़ैद करने की, ना कोशिश करना,
मैं कपूर हूँ, बंद डिब्बे से भी उड़ जाऊँगा।
गिरिराज भंडारी
गिरिराज भंडारी
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