बस उसी को तोड़ कर दिये
**********************
लाखों को, वो करोड़ कर दिये
पर हमें ही छोड़ कर दिये
जिस चीज़ को साबित रहे चाहा
बस उसी को तोड़ कर दिये
ये तंत्र बनाया नहीं हमने
बलात वो झंझोड़ कर दिये
पंगत में लोग रह गये भूखे
टेबल में भाग दौड़ कर दिये
गालियाँ भेजी थी थोड़ी कम
पर , देने वाले जोड़ कर दिये
सीधा सरल था रास्ता मेरा
टेढ़े आये , मोड़ कर दिये
सियासत और देश की सेवा ?
तबीयत हंसोड़ कर दिये
गिरिराज भन्डारी
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लाखों को, वो करोड़ कर दिये
पर हमें ही छोड़ कर दिये
जिस चीज़ को साबित रहे चाहा
बस उसी को तोड़ कर दिये
ये तंत्र बनाया नहीं हमने
बलात वो झंझोड़ कर दिये
पंगत में लोग रह गये भूखे
टेबल में भाग दौड़ कर दिये
गालियाँ भेजी थी थोड़ी कम
पर , देने वाले जोड़ कर दिये
सीधा सरल था रास्ता मेरा
टेढ़े आये , मोड़ कर दिये
सियासत और देश की सेवा ?
तबीयत हंसोड़ कर दिये
गिरिराज भन्डारी
सुंदर कविता।
ReplyDelete'गालियाँ भेजी थी थोड़ी कम
पर, देने वाले जोड़ कर दिये'
अक्सर ऐसे होता है कहने वाला थोडा कहता है पर बताने वाले बढा कर पहुंचाते हैं, अच्छे-खासे संबंधों में विष घोलने का काम करते हैं।
कविता का व्यंग्यात्मक पुट ताकतवर है।