Monday, 11 March 2013

मैं कैसा हूँ ?

मैं कैसा हूँ ?
जो वो कहते हैं सुन लेता हूँ
फिर उनको ही चुन लेता हूँ
वादों के धूमिल धागों से
मैं फिर सपने बुन लेता हूँ
मैं कैसा हूँ ?
जब चोट लगे रो लेता हूँ
मैं फर्शी पर सो लेता हूँ
हाँ, भूख लगी तो रोटी के
फिर सपने में खो लेता हूँ
मैं कैसा हूँ ?
सब कहते हैं मैं ज़िंदा हूँ
लेकिन खुद की ही निंदा हूं
साजिश से जिसके काट लिए
मैं, वो पर- कटा परिंदा हूँ
मैं कैसा हूँ ?
वादों के धूमिल धागों से
मैं फिर सपने बुन लेता हूँ
मैं कैसा हूँ ?
                गिरिराज भंडारी




No comments:

Post a Comment