Thursday 14 March 2013

ये लम्हा भी नहीं कामिल

अगर तू ही नहीं शामिल
ये लम्हा भी नहीं कामिल  ---( पूर्ण )

साथ, मंज़ूर है तूफाँ भी
अकेले  में नहीं साहिल

दफ़न हुआ हूँ मैं कब से
क्यूँ खुश है नही क़ातिल

इशारे भी समझते हैं
इतने भी नही जाहिल

उठो  हौसला करें  फ़िर
पहुंचे जो नही मंज़िल

जब तेरा साथ था तो
था कुछ भी नहीं मुश्किल

अब क़िस्सा ख़तम हो यारों
रहे , वो भी नहीं माइल-----( आसक्त )
              गिरिराज भंडारी

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