अब
तो समझो
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प्रक़ृति
में,
सब
जानते है
सब
मानते है
ध्वनि
की प्रतिध्वनि
वैसे
ही होती है !
जैसे
ध्वनि की गई थी
गालियों
के बदले , गालियां
मंत्रों
के बदले मंत्रोच्चार
और
तालियों के बदले , तालियां!!
लेकिन,
सब ये नही जानते
या
, स्वार्थवश मानना नही चाहते
कि
सारा ब्रम्हांड
कर्मोंके
लिये भी प्रतिध्वनि केन्द्र है
ठीक
वैसी ही घटनायें प्रकृति लौटायेगी
जैसा
हमने किया !!
फिर
चाहे हमने प्रकृति के खिलाफ किया हो
या
, किसी भी इंसान के खिलाफ !!!
कब
होगा, कैसे होगा , कहां होगा
कितना
होगा
सब
प्रकृति तय करेगी !!!!
हम
या तुम नही
गिरिफ्तारी
नही ,अदालत नही,कोई सुनवाई नही ,
प्रकृति
स्वयं अदालत है , जज है ,
सीधे
सजा की शुरुआत ,
भुगतना
सबकी मजबूरी है
निर्माण
के बदले निर्माण , विनाश के बदले विनाश !!!!!
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गिरिराज
भंडारी
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