क्या
ये सच नही ?
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सब्ज़ी
काटती मेरी पत्नी,
और
, खालीपन मे ध्यान से देखता मैं
देखता
हूँ ,
एक
एक भिंडी को प्यार से धोते पोछते हुये
फिर
एक एक करके छोटे छोटे तुकड़ों मे काटते हुये
फिर
अचानक
एक
भिंडी के ऊपरी हिस्से मे छेद दिख गया शायद
मेरी
पत्त्नी को
मैने
सोचा एक भिंडी खराब हो गई
लेकिन
, नही
मेरी
होशियार पत्नी ने
ऊपर
से थोड़ा काटा
कटे
हुये हिस्से को फेंक दिया
फिर
ध्यान से बची भिंडी को देखा
शायद
कुछ और हिस्सा खराब था
उसने
थोड़ा और काटा और फेंक दिया
फिर तसल्ली की ,
बाक़ी
भिंडी ठीक है कि नही ,
तसल्ली
होने पर
काट
के , सब्ज़ी बनाने के लिये रखी भिंडी मे मिला दिया !
मै
मन ही मन बोला ,
वाह
क्या बात है !!
पच्चीस
पैसे की भिंडी को भी हम
कितने
खयाल से ,ध्यान से सुधारते हैं ,
प्यार
के काटते है
जितना
हिस्सा सड़ा है , उतना ही काट के अलग करते है ,
बाक़ी
अच्छे हिस्से को स्वीकार कर लेते हैं ,
क़ाबिले
तारीफ है !
लेकिन
,
अफसोस
!!
इंसानो
के लिये कठोर हो जाते हैं
एक
ग़लती दिखी नही
कि
,उसके पूरे व्यक्तित्व को काट के फेंक देते हैं
क्या पच्चीस पैसे की भिंडी से भी कमतर हो गया है
आदमी ?
गिरिराज भंडारी
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