अभी
तो प्रवक्ता ही बोले हैं
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प्रकृति
तो खामोश है , चुप है ,
अभी
भी,
ये
उसका बोलना नही है
धोखे
मे ना रहें !
चुप
चाप देख रही है
सहन
कर रही है
ज्यादतियाँ
अपने
ऊपर होते हुये !
ये
जो कुछ भी हुआ
गुस्सा
नहीं है , प्रकृति का
इशारा
है महज ,
वो
भी ,
प्रक़ृति
के प्रवक्ताओं का !
नदी,
पहाड़ , झील, झरने
जंगल,
धुन्ध , आन्धी , तूफान
सागर
, ज्वालामुखी
और
ना जाने , कौन कौन प्रवक्ता है !
ये
तो बस इशारा है ,
सावधान
होने का !
प्रक़ृति
के प्रवक्ताओं का,
अभी
तो प्रकृति , खामोश है , शांत है
अभी
पकृति का बोलना बाक़ी है
अब
भी मजबूर किये तो
एक
दिन , बोलेगी, प्रकृति भी !!
”
प्रकृति की गोद में खेलें, गोद से ना खेलें ”
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गिरिराज भंडारी
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