Saturday, 27 July 2013

अभी तो प्रवक्ता ही बोले हैं



अभी तो प्रवक्ता ही बोले हैं
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प्रकृति तो खामोश है , चुप है ,
अभी भी,
ये उसका बोलना नही है
धोखे मे ना रहें !
चुप चाप देख रही है
सहन कर रही है
ज्यादतियाँ
अपने ऊपर होते  हुये !
ये जो कुछ भी हुआ
गुस्सा नहीं है , प्रकृति का
इशारा है महज ,
वो भी ,
प्रक़ृति के प्रवक्ताओं का !
नदी, पहाड़ , झील, झरने
जंगल, धुन्ध , आन्धी , तूफान
सागर , ज्वालामुखी
और ना जाने , कौन कौन प्रवक्ता है !
ये तो बस इशारा है ,
सावधान होने का !
प्रक़ृति के प्रवक्ताओं का,
अभी तो प्रकृति , खामोश है , शांत है
अभी पकृति का बोलना बाक़ी है
अब भी मजबूर किये तो
एक दिन , बोलेगी, प्रकृति भी !!
” प्रकृति की गोद में खेलें, गोद से ना खेलें ”
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                         गिरिराज भंडारी

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