Thursday 23 January 2014

“ दाग “



 दाग “ 
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मूर्खता है ,
होली में रंगे कपड़ों से
दाग छुड़ाने की कोशिश ।
कोई कहता भी नहीं उसे
दाग दार ।
वो अलग हैं , दागियों से
वो होली के हैं । बस ,
स्वीकार करें , वैसे ही
अगर मजबूरियाँ हैं ,  पहन भी लें ।
दाग दार कहा ही
तब जाता है
जब , सारा कुछ हो उजला
और
दाग हों एक –दो
इंगित भी किया जाता है इसे ही ,
प्रयास भी किया जा ता है
छुड़ाने का ,
रहती हैं अपेक्षाएँ भी
दाग छुड़ा लिये जाने की ,
ताकि , हो सकें आप ,
निर्मल , बेदाग ,पवित्र ॥
ये तो शुभ सूचक है  
आनन्द का ,
खुशी का कारण है ।
मुझे प्राप्त हुआ , ये आनन्द
सौभाग्य से ,
कल भी , और पहले भी
बाटना चाहता हूँ  मै , देना चाहता हूँ
आपको भी ,
कहता हूँ , इसीलिये
आप सब से,
दो – एक दाग दिख रहे हैं
कपड़ों में आप के भी ॥ 
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