Sunday, 30 June 2013

हम भी, माँ काली सभी होते रहेंगे



हम भी, माँ काली सभी होते रहेंगे 
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क्या ख्वाब ही ख्वाब संजोते रहेंगे
और काम  के वक़्त में  सोते रहेंगे

जिस जगह दादा कभी कुर्सी में बैठे 
सुन रहे हैं उस जगह पोते रहेंगे

अब तो अमृत वृक्ष के पौधे उगायें
कब तलक ज़हर ही हम बोते रहेंगे ?

मुस्कुराहट पे हमारा भी तो हक़ है
कब तलक घुटते रहें,रोते रहेंगे ?

उनकी साजिश है, दीवारें उठें ,पर
क्या हमारी शक्ति हम खोते रहेंगे ?

रक्त बीजों की तरह बढ़ते अगर हैं
हम भी, माँ काली सभी होते रहेंगे

           गिरिराज भंडारी

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