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दाग “
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मूर्खता
है ,
होली
में रंगे कपड़ों से
दाग
छुड़ाने की कोशिश ।
कोई
कहता भी नहीं उसे
दाग
दार ।
वो
अलग हैं , दागियों से
वो
होली के हैं । बस ,
स्वीकार
करें , वैसे ही
अगर
मजबूरियाँ हैं , पहन भी लें ।
दाग
दार कहा ही
तब
जाता है
जब
, सारा कुछ हो उजला
और
दाग
हों एक –दो
इंगित
भी किया जाता है इसे ही ,
प्रयास
भी किया जा ता है
छुड़ाने
का ,
रहती
हैं अपेक्षाएँ भी
दाग
छुड़ा लिये जाने की ,
ताकि
, हो सकें आप ,
निर्मल
, बेदाग ,पवित्र ॥
ये
तो शुभ सूचक है ।
आनन्द
का ,
खुशी
का कारण है ।
मुझे
प्राप्त हुआ , ये आनन्द
सौभाग्य
से ,
कल
भी , और पहले भी
बाटना
चाहता हूँ मै , देना चाहता हूँ
आपको
भी ,
कहता
हूँ , इसीलिये
आप
सब से,
दो
– एक दाग दिख रहे हैं
कपड़ों
में आप के भी ॥
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