Sunday 30 June 2013

हम भी, माँ काली सभी होते रहेंगे



हम भी, माँ काली सभी होते रहेंगे 
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क्या ख्वाब ही ख्वाब संजोते रहेंगे
और काम  के वक़्त में  सोते रहेंगे

जिस जगह दादा कभी कुर्सी में बैठे 
सुन रहे हैं उस जगह पोते रहेंगे

अब तो अमृत वृक्ष के पौधे उगायें
कब तलक ज़हर ही हम बोते रहेंगे ?

मुस्कुराहट पे हमारा भी तो हक़ है
कब तलक घुटते रहें,रोते रहेंगे ?

उनकी साजिश है, दीवारें उठें ,पर
क्या हमारी शक्ति हम खोते रहेंगे ?

रक्त बीजों की तरह बढ़ते अगर हैं
हम भी, माँ काली सभी होते रहेंगे

           गिरिराज भंडारी

तासीर में ये सभी शरारे *******************



तासीर में ये सभी शरारे
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हर तरफ आंसुओं की धारे हैं
उनकी खामोशियाँ भी मारे हैं

आओ तूफाँ से दोस्ती कर लें
फिर कहेंगे कि हम किनारे हैं

हद हैवानियत की आ पहुँची
इंसानियत को बहुत उतारे हैं

फिर बचाने को कई आयेंगे
बालीवुड के बडे सितारे हैं

लफ्ज़ इनको न समझना यारों
तासीर में  ये सभी शरारे हैं               ( शरारे =चिंगारी )

मुझे बहलाने की कोशिश छोड़ें
नज़र के आगे , सब नज़ारे हैं

हम में कुछ साजिशों चंगुल के 
और कुछ चुप्पियों के मारे हैं 

             गिरिराज भंडारी